अनुभूति में
गौतम जोशी की
रचनाएँ
अलग मंज़िलें
खेल आया हूँ
बचपन
बस तुझे चाहती हूँ
मलाल करते हैं
सरकारी
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अलग मंज़िलें
बहुत अलग हैं मंज़िलें ये कुछ मेरी
गर तुम साथ हो तो बात होगी
बड़ी बेखुदी में कहता हूँ ये हँसकर
गर तुम साथ हो तो बात होगी
अजब-सी ग़ज़ब-सी मेरी ये राहें
माथे पे शिकन, ना दिल में आहें
बड़ी आरजू से माँगा है तुमको
गर तुम साथ हो तो बात होगी
मुख़ातिब हूँ मैं जब, मेरी तिश्नगी से
मिटा लूँ इसे मैं यों हसरत नहीं है
मौजूदगी में तेरी होता है ये अक्सर
गर तुम साथ हो तो बात होगी
ये शामें, ये रातें, ये तन्हाइयों के लम्हे
ये फ़ासले मिटाने में सदियाँ लगेंगी
मेरी हक़ीक़त को मैं भूल जाऊँ
गर तुम साथ हो तो बात होगी।
9 जून 2007
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