खेल आया हूँ
चूरण गोली की पुड़िया और बेर लाया हूँ
अपने बस्ते में आज बचपन समेट लाया हूँ
तपती दोपहर में सड़कें नापा करता था
आज उन्हीं राहों से नादानी कुरेद लाया हूँ
आम-अमरूद की टोकरी में बसती थी ज़िंदगी
फिर वही खट्टी-मीठी साँसे बिखेर लाया हूँ
वहाँ नदी थी, झरना था, लंबा पहाड़ था
साथ यादों की पूरी रेलमपेल लाया हूँ
लाने को तो मेरे बहुत कुछ था मगर
बस साथ अपने नादानी भरे खेल लाया हूँ।
9 जून 2007
|