मलाल करते हैं
हमारी बातों पर लोग एतराज़ करते हैं
बहुत बड़े अदाकार हैं मज़ाक करते हैं
हर आदमी में छुपी हैं ढेरों कहानियाँ
लोग फिर भी तन्हाइयों का इज़हार करते हैं
कहीं तो फिक्र नहीं रहती घंटों की
कहीं पे लम्हों का हिसाब करते हैं
लोगों को अपनी नासमझी पर नाज़ है
खाली पड़े कनस्तर हैं, आवाज़ करते हैं
खुदा बनाने की तो अब हद हो गई
ठोकर खाते पत्थरों को आबाद करते हैं
दुनिया में जूझने की ताकत ही नहीं बची
बीच रास्तों से लौटकर मलाल करते हैं
9 जून 2007
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