अनुभूति में
आकुल की रचनाएँ-
दोहों में-
अतिथि पाँच दोहे
नयी कुंडलियों में-
वर दो ऐसा शारदे
कुंडलिया में-
सर्दी का मौसम
साक्षरता
छंदमुक्त में-
झोंपड़ पट्टी
संकलन में-
मेरा भारत-
भारत
मेरा महान
नया साल-
आया
फिर नव वर्ष
देश हमारा-
उन्नत
भाल हिमालय
नीम- नवल बधाई
दीप धरो-
उत्सव गीत
होली है-
होली रंगों से बोली
|
|
साक्षरता
(१)
बच्चे, बूढ़े, नार, नर, पाएँ अक्षर ज्ञान।
अनपढ़ दुनिया को भला, क्या समझें नादान।
क्या समझें नादान, कूप मंडूक रह जाते,
जो शिक्षित हों आज, वही ज्ञानी बन पाते।
कह आकुल कविराय, न साक्षर खाएँ गच्चे।
पाएँ अक्षर ज्ञान, नार, नर, बूढ़े, बच्चे।
(२)
कल पढ़ता हो आज पढ़, पढ़ना ही भवितव्य।
राह अशिक्षित कठिन है, दूर बहुत गंतव्य।
दूर बहुत गंतव्य, मिलेंगे छल प्रतिकारी।
और निरक्षर मूढ़, ढोंग ओढ़े व्यभिचारी।
कह "आकुल" कविराय, ज्ञान हासिल हो हर पल,
आत्म शुद्धि, संस्कार, सँवारे शिक्षा ही कल।
२९ अक्तूबर २०१२
|