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आया फिर नववर्ष
 
आया फि‍र नववर्ष भूल जाओ
जो बीता।

धूल झाड़
ख्वाबों को बाहों में भर लो
फूल खिले बागों को राहों में कर लो
काँटों को भी साथ रखो अभिमान न आए
राख हटा अंगारों को दामन में भर लो
समय नहीं रुकता है चलता
रहा जो जीता।

फि‍र अवसर
आएगा ढूँढ़ो यह अथाह है
हर युग में इतिहास बने यह समय गवाह है
बुद्धिमान हर मानव है पर बुद्ध हैं कितने
साहिल कभी नहीं मरते तूफान गवाह है
कर्मण्येव बना है वो पढ़ता
रहा जो गीता।

छोटी-छोटी
खुशियों के पल छिन न छोड़ो
छोटी-छोटी बातों पे अब मुँह न मोड़ो
कब कोई इक राह बना जायेगी दुनिया
छोटी-छोटी पगडँ‍डियों पे हाथ न छोड़ो
बना मसीहा वो, दिल भरता
रहा जो रीता।

-आकुल
३० दिसंबर २०१३

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