कल था मौसम बौछारों का
आज तीज और त्योहारों का
रंग रोगन वंदनवारों का
घर घर जा कर बंजारा नित
इक नवगीत सुनाए।
कल बिजुरी ने पावस गीत
दीपक राग आज हर दीप
भ्रमर गीत गाते मन मीत
सात सुरों में अरु बयार ने
उत्सव गीत सुनाए।
शरत चाँदनी छिटकी नभ से
कमल कली भी चटकी फट से
बजी पैंझनी कौंधनी कटि से
चमक चाँदनी निकली बन ठन
घर घर दीप जलाए।
मदन दीप दीपाधारों से
रंगोली घर के द्वारों से
भरे हुए पथ अंगारों से
क्षितिज परे तक देव दिवाली
अमित प्रदीप लुटाये।
दिन मधुबन मधुयामिनी रातें
देवोत्थान सजी बारातें
जितने मुँह और उतनी बातें
कूल कलिन्दी कदम्ब तले कहीं
कान्हा बंसी बजाये।
-आकुल
२४ अक्तूबर २०११ |