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होली रंगों से बोली,
तुम सबके संग मैं भी हो ली।
तुम दिल से भरो रंग हमजोली,
मैं रंग से भरूँगी हर झोली।
टेसू, कचनार, कहीं केशर,
गुलाल, कुंकुम, कहीं रंग रोली।
रंग-रंग में रँगे, तन रंग से रचे,
कहीं भीगी साड़ी, तंग चोली।
कहीं बरजोरी, कहीं हुड़दंगा,
कहीं चुहल, हँसी, कहीं ठिठौली।
कहीं पिचकारी, कहीं जलझारी,
कहीं ढोल-नगाड़ों की टोली।
रंग इंद्रधनुष छाया नभ पर,
भू पर बसंत की रंगोली।
तुम दिल से भरो रंग हमजोली,
मैं रंग से भरूँगी हर झोली।
अनुपम निसर्ग सौंदर्य निरख,
तुम सब के संग मैं जो हो ली।
मैं बड़भागी जो मिली तुमसे और
देख सकी ब्रज की होली।
हर सखा बना छवि श्यातम सखी,
तुम में छवि राधा की भोली।
जाओ सखि साजन सँग खेलो,
मैं तो हर घर-घर में हो ली।
देखी फिर ओटन सखि साजन,
कहिं कामकेलि कहीं अठखेली।
तन-मन हरसा रंग-रंग बरसा,
फिर हर सखि साजन की हो ली।
-आकुल
२१ मार्च २०११
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