अनुभूति में अशोक चक्रधर की रचनाएँ-
नई रचनाएँ-
कम से कम
कौन है ये जैनी
तो क्या यहीं?
नया आदमी
फिर तो
बौड़म जी बस में
ससुर जी उवाच
सिक्के की औक़ात
होली में-
होरी सर र र
कविताओं में-
बहुत पहले से भी बहुत पहले
हास्य व्यंग्य में-
गति का कसूर
ग़रीबदास का शून्य
जंगल गाथा
तमाशा
समंदर की उम्र
हँसना रोना
हम तो करेंगे
और एक पत्र - फ़ोटो सहित
स्तंभ-
समस्यापूर्ति
संकलन में-
नया साल-सुविचार |
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गरीबदास का शून्य
-अच्छा सामने देख
आसमान दिखता है?
- दिखता है।
- धरती दिखती है?
- दिखती है।
- ये दोनों जहाँ मिलते हैं
वो लाइन दिखती है?
- दिखती है साब।
इसे तो बहुत बार देखा है।
- बस ग़रीबदास
यही ग़रीबी की रेखा है।
सात जनम बीत जाएँगे
तू दौड़ता जाएगा, दौड़ता जाएगा,
लेकिन वहाँ तक
कभी नहीं पहुँच पाएगा।
और जब, पहुँच ही नहीं पाएगा
तो उठ कैसे पाएगा?
जहाँ हैं, वहीं का वहीं रह जाएगा।
गरीबदास!
क्षितिज का ये नज़ारा
हट सकता है
पर क्षितिज की रेखा
नहीं हट सकती,
हमारे देश में
रेखा की ग़रीबी तो मिट सकती है,
पर ग़रीबी की रेखा
नहीं मिट सकती।
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