अनुभूति में अशोक चक्रधर की रचनाएँ-
नई रचनाएँ-
कम से कम
कौन है ये जैनी
तो क्या यहीं?
नया आदमी
फिर तो
बौड़म जी बस में
ससुर जी उवाच
सिक्के की औक़ात
होली में-
होरी सर र र
कविताओं में-
बहुत पहले से भी बहुत पहले
हास्य व्यंग्य में-
गति का कसूर
ग़रीबदास का शून्य
जंगल गाथा
तमाशा
समंदर की उम्र
हँसना रोना
हम तो करेंगे
और एक पत्र - फ़ोटो सहित
स्तंभ-
समस्यापूर्ति
संकलन में-
नया साल-सुविचार |
|
बौड़म जी बस में
बस में थी भीड़
और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी,
और पक्के।
पर अपने बौड़म जी तो
अंग्रेज़ी में
सफ़र कर रहे थे,
धक्कों में विचर रहे थे।
भीड़ कभी आगे ठेले,
कभी पीछे धकेले।
इस रेलमपेल
और ठेलमठेल में,
आगे आ गए
धकापेल में।
और जैसे ही स्टॉप पर
उतरने लगे,
कंडक्टर बोला-
ओ मेरे सगे!
टिकट तो ले जा!
बौड़म जी बोले-
चाट मत भेजा!
मैं बिना टिकिट के
भला हूँ,
सारे रास्ते तो
पैदल ही चला हूँ।
01 फरवरी 2007
|