गुलमोहर औ'
					धूप
					
                  १
					आँख मिचौली खेलते, गुलमोहर औ’ धूप ।
					तपन उलीचे दोपहर, सूख रहे नलकूप ।।
					२
					१
					उन्मन सी रहने लगी, नदी किनारे नाव ।
					सूर्य किरण हरने लगी, काया सुख के ठाँव ।।
					
					२
					ताप झरे आकाश से, पके आम औ जाम ।
					कृषक तप रहा खेत में, पकी फसल के नाम ।।
					
					३
					लिखता सूरज गगन में, पाती के रंग सात ।
					तपती धरती अगन में, धूप करे उत्पात ।।
					
					४
					धूप निगोड़ी छू गई, हौले से जल गात ।
					काया कृष होती गई, नदी, ताल, तरु, पात ।।
					
					५
					लहके फूल शिरीष के, बहके बेला गन्ध ।
					वेणी सजकर प्रेयसी, लिखती मोहक छंद ।।
					
					६
					जल उड़ जाए भाप बन, तन में चढ़ता ताप ।
					सुबह कठिन है जेठ की, सन्ध्या तक अभिशाप ।। 
                  
					
                  १ जून २०२२