अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुरेश कुमार पांडा की रचनाएँ-

दोहों में-
गुलमोहर औ' धूप

गीतों में-
अपने मन का हो लें
अस्तित्व
आज समझ आया है होना
तुम्हारे एक आने से
धूप में
फिर बिछलती साँझ में

भूल चुके हैं

 

 

गुलमोहर औ' धूप


आँख मिचौली खेलते, गुलमोहर औ’ धूप ।
तपन उलीचे दोपहर, सूख रहे नलकूप ।।


उन्मन सी रहने लगी, नदी किनारे नाव ।
सूर्य किरण हरने लगी, काया सुख के ठाँव ।।


ताप झरे आकाश से, पके आम औ जाम ।
कृषक तप रहा खेत में, पकी फसल के नाम ।।


लिखता सूरज गगन में, पाती के रंग सात ।
तपती धरती अगन में, धूप करे उत्पात ।।


धूप निगोड़ी छू गई, हौले से जल गात ।
काया कृष होती गई, नदी, ताल, तरु, पात ।।


लहके फूल शिरीष के, बहके बेला गन्ध ।
वेणी सजकर प्रेयसी, लिखती मोहक छंद ।।


जल उड़ जाए भाप बन, तन में चढ़ता ताप ।
सुबह कठिन है जेठ की, सन्ध्या तक अभिशाप ।।

१ जून २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter