अनुभूति में
सुरेश कुमार पांडा
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
अपने मन का हो लें
अस्तित्व
तुम्हारे एक आने से
धूप में
फिर बिछलती साँझ में
गीतों में-
आज समझ आया है होना
भूल चुके हैं |
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अपने मन का हो लें
रात अँधेरी दादुर बोलें
ऐसे में कैसे हम सो लें
अमराई को छोड़
कोयलिया शहर बस गई
पीहर पाकर गूँज रही है
कूक सुरीली
आओ अब हम
खिड़की खोलें
जुगनू ने पंगत तोड़ी है
तारों की संगत में आकर
उजियारा
सपना बन बैठा
कैसे हम जीवन
रस घोलें
लजवंति भी सिमट गई है
नींद भरी पलकें ढरकाकर
क्षितिज के
उस पार छिपी है
भीत चाँदनी स्याही से चादर
रँगवाकर
तम का क्या
विस्तार हो गया
बतलाओ तो
क्यों ना
अपने मन
का हो लें
२ फरवरी २०१५
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