अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुरेश कुमार पांडा की रचनाएँ-

नये गीतों में-
अपने मन का हो लें
अस्तित्व
तुम्हारे एक आने से
धूप में
फिर बिछलती साँझ में

गीतों में-
आज समझ आया है होना
भूल चुके हैं

 

 

भूल चुके हैं

अपना होना भूल चुके हैं

सुबह सबेरे
सब के सब ही
सुध बुध खोकर
भाग रहे हैं कहीं पहुँचने
मैं भी तो हिस्सा हूँ इसका
सका नहीं क्यों
कहीं पहुँचने

यंत्रों की माया नगरी है
नगर घड़ी के
चल काँटों पर
सब के ही सब
झूल चुके हैं
अपना होना भूल चुके हैं

पीछे मुड़कर
देख सका न
आज तलक
क्या छूट गया है
छुपकर
किये हुए कामों का
कैसे भांडा फूट
गया है

अपना कौन
पराया कैसा
सबसे अहम
सभी को पैसा
साँसों की
कितना बाकी है
गिनती को भी
भूल चुके हैं
अपना होना
भूल चुके हैं

४ जुलाई २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter