अनुभूति में
सुरेश कुमार पांडा
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
अपने मन का हो लें
अस्तित्व
तुम्हारे एक आने से
धूप में
फिर बिछलती साँझ में
गीतों में-
आज समझ आया है होना
भूल चुके हैं |
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धूप में
आओ बैठें धूप में अब
ओस की बातें करें
बात निकली है तो फिर
बात बन ही जायेगी
मौन कब तक
डूबती सी साँस की
कथा को कह पायेगी
आ भी जाओ कि
अचल पर्वत शिखर पर
हम मिल
जोश की बातें करें
आस की
फसलें उगी हैं
बिश्वास है
फल भी लगेंगे
निर्माण के नव व्याकरण में
कर्म के सब रँग सजेंगे
एक पग
पहले उठे जो
लक्ष्य बन सौगात
उन्नत भाल को
फिर फिर वरें
काजल अँजी आखें
पुरानी बात है
कदम्ब की गोलाईयाँ
नहीं अभिजात है
मन, हो रहा आकुल
ठहर कर देख
हृदय के मिलन का रस
फिर हुआ अज्ञात है
गा भी जाओ
गीत इक, कि
आ रही
हर साँस अब
महका करें
२ फरवरी २०१५
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