अनुभूति में
सुधांशु उपाध्याय की रचनाएँ—
नई
रचनाओं में-
आधी रात
जो है होनेवाला
फोटो के बाहर चिड़िया
सपना रखना
गीतों में-
आने वाले
कल पर सोचो
औरत खुलती है
कथा कहें
कमीज़ के नीचे
काशी की गलियाँ
ख्वाबों के नए मेघ
खुसरो नहीं गुज़रती रैन
जीने के भी कई बहाने
दरी बिछाकर बैठें
नींद में जंगल
पोरस पड़ा घायल
बात से आगे
हुसैन के घोड़े
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सपना रखना
केवल साँसें लेना
ये तो खानापूरी है
दुनिया बदले या ना बदले
लेकिन इसका सपना रखना
बहुत जरूरी है
रोज बदलती दुनिया
लेकिन
यह बदलाव नहीं
जिन पेड़ों पर
साँप रेंगते
उनकी छाँव नहीं
वक्त नहीं है-
कहना ये
नकली मजबूरी है
मौसम का हर
तौर तरीका
क्यों मंजूर करें
बर्फ हो गए
चेहरों पर
थोड़ी सी आग धरें
कुछ लोगों की
खातिर दुनिया
अभी अधूरी है
बड़े घरों पर
बहुत भरोसा
कर के देख लिया
इन खजूर के
पेड़ों ने
छाया तक नहीं दिया
बच्चों के आ
नरम गले पर
हँसती छूरी है
अपने आप
नहीं कुछ होता
करना होता है
बेटों को ही
कर्ज बाप का
भरना होता है
अभी पसीने
को देनी
उसकी मजदूरी है
२९ नवंबर २०१० |