जो है होने वाला
आधी दुनिया
काजल पीती
आधी पिये उजाला
उस मंजर को
देख रहा हूँ जो है होने वाला
खिड़की तोड़
नया अब सूरज
भीतर आएगा
बादल बंजर धरती पर आ
नदी बिछाएगा
रामरती ने घर के बाहर
बायाँ पाँव निकाला
उँगली होंठों पर
रखने से बातें नहीं रुकेंगी
लोहे की छत होगी पर
बरसातें नहीं रुकेंगी
पाजेबों के दिन पूरे होते
अब बोलेगा छाला
आवाजों के
भीतर से
अब चुप्पी बोलेगी
हवा उसे छूकर के
बासंती हो लेगी
दरवाजे से आँख
चुराकर भाग रहा है ताला
बहता हुआ
पसीना
यह पहचान बनाएगा
आँखों में
नमकीन नदी का पानी आएगा
रामरती की लड़की ने है
सूरज नया उछाला
२९ नवंबर २०१० |