अनुभूति में
ओम नीरव
की रचनाएँ
अंजुमन में-
गजल क्या कहें
छलूँगा नहीं
जिया ही क्यों
फागुनी
धूप में
हंस हैं काले
गीतों में-
धुंध के उस पार
पल पल पास बनी ही रहती
पाँखुरी पाँखुरी
माटी तन है मेरा
वही कहानी
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वही कहानी
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है
संध्या की कालिमा उषा के पन्नों पर बिखरा जाता है
एक झूँक में ही अम्बर के
मैंने दोनों छोर बुहारे
मेरे पौरुष के आगे तो
टिके न नभ के चाँद सितारे
फिर क्यों नभ के धवल पटल पर कागा सा मंडरा जाता है
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है
पलकों के पल्लव पर ढुरकी
बूँद कहीं जो पड़ी दिखायी ,
नेह किरन से परस-परस कर
मैंने तो हर बूँद सुखायी
फिर-फिर क्यों नयनों की सीपी में सागर गहरा जाता है
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है
उर-मरुथल को स्नेह-सिक्त कर
मैंने हरित क्रान्ति सरसायी
पोषण-भरण-सृजन-अनुरंजन
करने वाली पौध उगाई
क्यों कोई द्रुम हरियाते ही एक बीज पियरा जाता है
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है
कभी सोचता हूँ न करूँ कुछ
जो होता है सो होने दूँ
निर्झरणी के ही प्रवाह में
जीवन लहरों को खोने दूँ
पर 'नीरव' छौने को फिर-फिर कोई प्रिय हुलरा जाता है
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है
२७ मई ३०१३
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