अनुभूति में
ओम नीरव
की रचनाएँ
अंजुमन में-
गजल क्या कहें
छलूँगा नहीं
जिया ही क्यों
फागुनी
धूप में
हंस हैं काले
गीतों में-
धुंध के उस पार
पल पल पास बनी ही रहती
पाँखुरी पाँखुरी
माटी तन है मेरा
वही कहानी
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छलूँगा नहीं
शब्द से सत्य को
मैं छलूँगा नहीं
तालियों के चषक में ढलूँगा नहीं
प्रीति की जाह्नवी क्या मिलेगी तुम्हें
मैं हिमालय कभी जो गलूँगा नहीं
पास है पर मिलेगी न मंज़िल कभी
राह पर दो क़दम जो चलूँगा नहीं
पल-चषक! प्यास भर आज पी लूँ तुझे
बाद में हाथ यों ही मलूँगा नहीं
ओ शमा! मैं पतंगा नहीं, गीत हूँ
ख्याति की आग में मैं जलूँगा नहीं
४ नवंबर २०१३
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