अनुभूति में
ओम नीरव
की रचनाएँ
अंजुमन में-
गजल क्या कहें
छलूँगा नहीं
जिया ही क्यों
फागुनी
धूप में
हंस हैं काले
गीतों में-
धुंध के उस पार
पल पल पास बनी ही रहती
पाँखुरी पाँखुरी
माटी तन है मेरा
वही कहानी
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गजल क्या कहें
जब न जानेगज़ल तो गज़ल क्या कहें।
कुछ न अपना असल तो गजल क्या कहें।
जबकि अल्फाज़ में नाजोअंदाज़ में,
दर असल है नक़ल तो गज़ल क्या कहें।
इश्क के गाँव में हुस्न की मंडियाँ,
चल रहीं आजकल तो गज़ल क्या कहें।
तीन अल्फाज़ में जिंदगी प्यार से,
हो रही बेदखल तो गज़ल क्या कहें।
वक़्त ने काट ली उम्र के खेत से,
जिंदगी की फसल तो गज़ल क्या कहें।
रह गए हम तो 'नीरव' उन्हें देखकर,
फिर न पाये सँभल तो गज़ल क्या कहें।
४ नवंबर २०१३
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