अनुभूति में
ओम नीरव
की रचनाएँ
अंजुमन में-
गजल क्या कहें
छलूँगा नहीं
जिया ही क्यों
फागुनी
धूप में
हंस हैं काले
गीतों में-
धुंध के उस पार
पल पल पास बनी ही रहती
पाँखुरी पाँखुरी
माटी तन है मेरा
वही कहानी
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पल पल पास बनी ही रहती
प्राणप्रिये, देखो वह आतुर, मेरी पीर पीर हरने को
पल-पल पास बनी ही रहती, मेरी मृत्यु मुझे वरने को!
जीवन के कोरे कागद पर
साँसों के शब्दों का टंकण,
यों पाती लिखता रहता हूँ
पूरी हो तो करूँ समर्पण
तुम कह दो तो पूरी कर दूँ , तुम कह दो तो पूरी कर दूँ -
फिर मत कहना कहाँ मिलें अब, नीचे हस्ताक्षर करने को!
तुम जीवन संगिनी प्रियतमे!
वह जीवन के पार संगिनी,
देखो द्वेष न करना उससे
वह तो माया-मोह भंगिनी
साया भी जब साथ न देगा, साया भी जब साथ न देगा-
आएगी बाँहें फैलाकर, अपने अंक मुझे भरने को!
कबतक उसे भुलावा दूँगा
जो पल-पल अंकन करती है,
उसका तो होना ही होगा
उर की हर धडकन कहती है
क्या दो पल उधार दे देगी, क्या दो पल उधार दे देगी -
तेरे मृदुल-मृदुल अधरों पर, मेरे तृषित अधर धरने को
२७ मई ३०१३
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