अनुभूति में
माहेश्वर तिवारी की रचनाएँ-
गीतों में-
आओ हम धूप वृक्ष काटें
एक तुम्हारा होना
गहरे गहरे से पदचिह्न
छोड़ आए
झील
पर्वतों से दिन
बहुत दिनों बाद
मूँगिया हथेली
याद तुम्हारी
सारा दिन पढ़ते अख़बार
सोए हैं पेड़
संकलन में-
वसंती हवा-शाम
रच गई
धूप के पांव-धूप
की थकान
प्रेम कविताएँ-
तुम्हारा होना
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सारा दिन पढ़ते अख़बार
सारा दिन पढ़ते अख़बार,
बीत गया है फिर इतवार।
गम़लों में पड़ा नहीं पानी,
पढ़ी नहीं गई संत वाणी,
दिन गुज़रा बिल्कुल बेकार।
सारा दिन पढ़ते अख़बार।
पोंछी नहीं पत्रों की गर्द
खिड़की-दरवाज़े बेपर्द
कोशिश करके कितनी बार
सारे दिन पढ़ते अख़बार।
मुन्ने का तुतलाता गीत-
अनसुना गया बिल्कुल बीत
कई बार करके स्वीकार।
सारे दिन पढ़ते अख़बार।
बीत गया है फिर इतवार।
१ अक्तूबर २००६
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