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अनुभूति में माहेश्वर तिवारी की रचनाएँ-

गीतों में-
आओ हम धूप वृक्ष काटें
एक तुम्हारा होना
गहरे गहरे से पदचिह्न
छोड़ आए
झील
पर्वतों से दिन
बहुत दिनों बाद
मूँगिया हथेली
याद तुम्हारी
सारा दिन पढ़ते अख़बार

सोए हैं पेड़

संकलन में-
वसंती हवा-शाम रच गई
धूप के पांव-धूप की थकान
प्रेम कविताएँ- तुम्हारा होना

 

झील

उंगलियों से कभी
हल्का-सा छुएँ भी तो
झील का ठहरा हुआ जल
काँप जाता है।

मछलियाँ बेचैन हो उठतीं
देखते ही हाथ की परछाइयाँ
एक कंकड़ फेंककर देखो
कांप उठती हैं सभी गहराइयाँ
और उस पल झुका कंधों पर
क्षितिज के
हर लहर के साथ
बादल काँप जाता है।

जानते हम
जब शुरू होता कभी
कंपकंपाहट से भरा यह गंदुमी
बिखराव
टूट जाता है अचानक बेतरह
एक झिल्ली की तरह पहना हुआ
ठहराव
जिस तरह खूंखार
आहट से सहमकर
सरसराहट भरा जंगल काँप जाता है।

१ अक्तूबर २००६

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