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अनुभूति में कृष्ण भारतीय की
रचनाएँ-

गीतों में-
बूढ़ा बरगद इतिहास समेटे बैठा है
मर जाने का दिल करता है
रामरती ने हाट लगायी
लूट खसूट मचा रखी है
सौंधी मिट्टी के गाँव
हैं जटायु से अपाहिज हम

 

रामरती ने हाट लगायी

जिसने देखा मार ठहाका
वही हँस रहा ही ही हो!
रामरती ने हाट लगायी
ले करके खरबूजे दो!

लगीं हाट में बड़ी दुकानें
रामरती घबरायी है
पेट काट कर एक वक़्त का
कुछ खरबूजे लायी है

हँसें मुए जिनको हँसना है
हो ही ही या ही ही हो!

ज़्यादा माल भरे वो कैसे
रकम चाहिए भइया जी
दो खरबूजों में क्या प्राफिट
होगा, एक रूपैया जी

सबर करेगी रामरती
है उसकी मर्ज़ी जो भी हो!

एक रूपैया बचा, तो उसका
लेगी चना चबैना जी
बच्चे खा, पानी पी लेंगे
एक कटेगी रैना जी

एक रात तो कुआँ भरेगा
घर सुख से जायेगा सो!

रामरती दुख कहे किसे जी
हर सरहद पर नाके हैं
सबके पेट भरे हैं आधे
एक वक़्त के फाँके हैं

सब बस्ती है, रामरती सी
अच्छे दिन की जय जय हो!

१ फरवरी २०१७

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