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अनुभूति में कृष्ण भारतीय की
रचनाएँ-

गीतों में-
बूढ़ा बरगद इतिहास समेटे बैठा है
मर जाने का दिल करता है
रामरती ने हाट लगायी
लूट खसूट मचा रखी है
सौंधी मिट्टी के गाँव
हैं जटायु से अपाहिज हम

 

मर जाने का दिल करता है

सुबह शाम
क्या रोते गाते रहें सदा
कभी कभी, हँस जाने का दिल करता है!

जिधर देखिये, चिन्ता, दर्द
उदासी है
घिसी पिटी दिनचर्या, हर दिन
बासी है

खारे जल में
मार डुबकियाँ रोज कभी
मीठा जल भी पाने का दिल करता है!

भाग-दौड़ में लथपथ रहे
पसीने से
कभी बहुत उकता जाते हैं
जीने से

ऊपर से
अफ़सरशाही, इस दफ़्तर से
घबरा कर घर जाने का दिल करता है!

घर भी क्या ना मस्ती, ना कोई
जश्न यहाँ
जिधर देखिये, प्रश्न खडे हैं
यहाँ वहाँ

ऐसे में
उकता जाते हैं जीवन से
सच बोलें, मर जाने का दिल करता है!

सड़कों पर, गुंडों का नंगा
नाच यहाँ
नैतिकता के भाषण, चुप, मत
बाँच यहाँ

शहर दबंगों
का है, मैं तो डरता हूँ
अपना तो सिर जाने का डर लगता है!

१ फरवरी २०१७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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