अनुभूति में
कृष्ण भारतीय की
रचनाएँ-
गीतों में-
बूढ़ा बरगद इतिहास समेटे बैठा है
मर जाने का दिल करता है
रामरती ने हाट लगायी
लूट खसूट मचा रखी है
सौंधी मिट्टी के गाँव
हैं जटायु से अपाहिज हम
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हैं जटायु से अपाहिज हम
दम घुटा जाता हमारा
धुँए के वातावरण में
क्या करें?
है नहीं सामर्थ्य इतनी
कि खरीदें
सूर्य से थोड़ा उजाला
गगनचुंबी कीमतों के
देश में
है बहुत मुश्किल जुटाना
एक रोटी का निवाला
हैं जटायु से अपाहिज हम
हरेक सीताहरण में
क्या करें?
एक ध्रुव तारा हमारी ज़िन्दगी
पर बिक रही है
भाव रद्दी के
रोज़ बन्दर सा नचाते हैं
हमें उफ़
ये मदारी राजगद्दी के
ढेर सारे प्रश्न अगवानी किया करते -
नये नित जागरण में
क्या करें?
१ फरवरी २०१७
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