अनुभूति में
कृष्ण भारतीय की
रचनाएँ-
गीतों में-
बूढ़ा बरगद इतिहास समेटे बैठा है
मर जाने का दिल करता है
रामरती ने हाट लगायी
लूट खसूट मचा रखी है
सौंधी मिट्टी के गाँव
हैं जटायु से अपाहिज हम
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बूढ़ा बरगद इतिहास समेटे बैठा है
वो बूढ़ा बरगद
सदियों से सब देख रहा
इस गाँव के गुजरे
सभी पुराने से पल छिन!
उसने देखा हरिया कंधे पर हल लादे
उसने देखा धनिया ने कंडे जब थापे
उसने देखा हीरा मोती को बुधुआ सँग
तपती दुपहिया खेत जोतते बिन हाँफे
उसने देखा है
एक एक पैसा गिनते
रामू काका को
खाद बीज लाने के दिन!
उसने चौपालों में हुक्के का राग सुना
आल्हा उदल का क़िस्सा रातों जाग सुना
मेले देखे, झूले झूले, चुस्की खायी
हर दिन अम्माँ जब सुबह जल देने आयी
वह देख रहा
सब धीरे धीरे भाग रहे
मिट्टी की ममता
छोड़, शहर की लगी लगन!
वो वैद्य कि जो नाड़ी ज्ञानी धन्वन्तरि थे
वो झाड़ फूँक, बाबा के जन्तर मन्तर थे
जब रमुआ रोया देख तड़पते भाई को
लाये कैसे महँगी बीमार दवाई को
बूढ़े बरगद ने
तिल तिल कर मरते देखा
रमुआ को
छोटे भाई को जब लगी अगन!
ललुआ अब लालाराम सेठ बन बैठ गये
त्रिपुरारी गन्दी राजनीति में, पैठ गये
थोड़ी सी शहरी हवा लगी, बंसी काका
भी जुगत लगा सरपंची जीती, ऐंठ गये
बूढ़ा बरगद
इतिहास समेटे बैठा है
साधू सा बस
चुपचाप करे हरि का सुमिरन!
१ फरवरी २०१७
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