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अनुभूति में देवेंद्र आर्य की रचनाएँ-

नए गीत-
ज़िंदगी की गंध
रहूँगा भोर तक
बहुत अँधेरा है
शब्द की तलवार

गीतों में-
आशय बदल गया
इतना ज्ञान नहीं
किससे बात करें
तुम्हारे बिन
बात अब तो खत्म करिए
मन सूखे पौधे लगते हैं

अंजुमन में-
जीवन क्या है
 

  शब्द की तलवार

शब्द की तलवार लेकर मैं चला हूँ
हार के परिवेश ये मेरे नहीं हैं
युद्ध का जयघोष मेरे कंठ में है
आँसुओं के गीत ये मेरे नहीं हैं!

ठोकरें तो हर कदम पर हैं
रहें भी
ज़िंदगी का काफ़िला
चलता रहेगा
अग्निधर्मा वाण
मेरे प्राण में हैं
चेतना का सिलसिला
ढलता रहेगा
हाथ में आयुध लिए सन्नद्ध हूँ मैं
लौटने वाले कदम मेरे नहीं हैं!

हर जगह तक्षक खड़े हैं
सिर उठाए
किंतु पौरुषहीन
नृप के आचरण हैं
व्याघ्र हैं
पर राजसत्ता के नशे में
चूमने में व्यस्त
गीदड़ के चरण हैं
एक जनमेजय लहू मैं जग रहा है
विषधरों-से मीत वे मेरे नहीं हैं!

सूर्य है
पर बादलों ने ढक लिया है
आज हम
जग के लिए उसको उबारें
तोड़ दें
मतभेद के ऊँचे कंगूरे
नेह का शृंगार कर
जम-मन सँवारें
मैं नए युग का सृजन लेकर चला हूँ
निरुत्साहित पंथ, वे मेरे नहीं हैं!

२६ अक्तूबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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