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अनुभूति में देवेंद्र आर्य की रचनाएँ-

नए गीत-
ज़िंदगी की गंध
रहूँगा भोर तक
बहुत अँधेरा है
शब्द की तलवार

गीतों में-
आशय बदल गया
इतना ज्ञान नहीं
किससे बात करें
तुम्हारे बिन
बात अब तो खत्म करिए
मन सूखे पौधे लगते हैं

अंजुमन में-
जीवन क्या है
 


 


 

  आशय बदल गया

बेशक अर्थ वही हो
आशय बदल गया
गतियाँ भीतर बाहर की कुछ यों बदलीं
जाने का अंदाज़ महाशय बदल गया।

अहम् सिकुड़ता जाता फिर भी वयं नहीं
भावबोध बदले हैं लेकिन शिवं नहीं
सीमाएँ तदर्थ होती है
टूटेंगी
जाने क्या-क्या बदला लेकिन एवं नहीं

जीवन का रस नहीं बदलता रुचियों से
प्यास वही है
भले जलाशय बदल गया।

चीज़ों से ज़्यादा चीज़ों का मतलब है
नहीं हो सका था जो तब
वो सब अब है
नहीं बदल के ही चीज़ें सड़ जाती हैं
जीवित रहना भी जीवन का करतब है

देह के बाहर देह बिना कायिक प्रजनन
गोद नहीं बदली
गर्भाशय बदल गया।

१९ जनवरी २००९

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