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अनुभूति में देवेंद्र आर्य की रचनाएँ-

नए गीत-
ज़िंदगी की गंध
रहूँगा भोर तक
बहुत अँधेरा है
शब्द की तलवार

गीतों में-
आशय बदल गया
इतना ज्ञान नहीं
किससे बात करें
तुम्हारे बिन
बात अब तो खत्म करिए
मन सूखे पौधे लगते हैं

अंजुमन में-
जीवन क्या है
 

 

बात अब तो खत्म करिए

होगा भी क्या बात अब तो खत्म करिए
बढ़ गई तो खबर होगी, अपनी इज़्ज़त को तो डरिए
जो हुआ उसका हमें भी खेद है।
क्या करें आकाश में ही छेद है।।

जानते हैं हुआ क्या था?
इंद्र ने फिर आ के धोखे से अहिल्या को छुआ था
किन्तु अबकी दोष गौतम ने अहिल्या को न देकर
इंद्र के मत्थे मढ़ा था।
हाय तौबा बस इसी पर
रुष्ट सारे भद्र जन हैं स्वर्ग में चर्चा भयंकर
व्यवस्था का प्रश्न अबला की चुनौती
पड़ गया ख़तरे में शायद वेद है।।

सत्य होता है सनातन
जिल्द बदली है किताबों की नहीं बदला है दर्शन
किंग होते थे कभी राजन कभी जिल्लेसुभानी
सांसद अब हैं महाजन।
वही कुर्सी वही चंदन
मूल्य सारे दो तरह के वही चीख़ें वही शोषण।
आंख सबकी एक होती है मगर
आँसुओं और आँसुओं में भेद है।।

1 जुलाई 2007

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