बहुत अंधेरा है
खुले हुए वातायन मन के
सब जग मेरा है
सूरज से कहना
आ जाए
बहुत अंधेरा है!
मैंने
खुशियों की सरहद पर
बोए चंदन हैं
नागफनी पर
विषधर पर
बाँधे सौ बंधन हैं
खुशबू को घर-घर रख दूँ
मन कान्ह बसेरा है!
रिश्तों की रूठी ठिठुरन
अब कुछ तो पिछली है
संबंधों के गहरे जल में
सिहरन निकली है
नदिया में सागर बजता
सरगम का घेरा है!
संदर्भों से जुड़ना
जुड़कर
कुछ सार्थक करना
बहुत बड़ा परिवेश
बनाकर हँसना
खुश रहना
दो पल का जीवन
जीवन हो
जग चकफेरा है!
२६ अक्तूबर २००९ |