अनुभूति में अनिलकुमार
वर्मा
की रचनाएँ—
घनाक्षरी में-
तीन घनाक्षरी छंद
गीतों में—
आँगन पावन तुलसी
किधर जा रहे राधेश्याम
नयनों में झलक रही
रामभरोसे, बैठे सोचें
सिंदूरी सपने
संकलन में-
मेरा भारत-
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके
मातृभाषा के प्रति-
आओ हिंदी दिवस मनाएँ
होली है-
फागुन
के अजब गजब रंग
ममतामयी-
मातृशक्ति वंदना
बेला के फूल-
पिछवाड़े बेला गमके
वर्षा मंगल-
रिमझिम बरसात में
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आँगन पावन तुलसी
आँगन पावन तुलसी
दरवाजे आम
ओसारे निबिया से
शरमाये घाम।
श्वेत पीत रतनार
चम्पा छवि न्यारी
तन मन हुलसाये
ज्यों शैशव किलकारी
बरगद की छाँव करें
पंथी विश्राम।
कोमल हाथों चित्रित
अल्पना रँगोली
चौबारे गूँजे नित
हँसी और ठिठोली
कैसे बिसरायें
यह स्मृति सुखधाम
सुख दुःख संघर्षों में
पाये, कभी भटके
बचपन से यौवन तक
जीवन बन छलके
तीसरे प्रहर काहे
बैठें पग थाम
ओसारे निबिया से
शरमाये घाम।
१५ फरवरी २०१६ |