अनुभूति में अनिलकुमार
वर्मा
की रचनाएँ—
गीतों में—
आँगन पावन तुलसी
किधर जा रहे राधेश्याम
नयनों में झलक रही
रामभरोसे, बैठे सोचें
सिंदूरी सपने
संकलन में-
मेरा भारत-
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके
मातृभाषा के प्रति-
आओ हिंदी दिवस मनाएँ
होली है-
फागुन
के अजब गजब रंग
ममतामयी-
मातृशक्ति वंदना
बेला के फूल-
पिछवाड़े बेला गमके
वर्षा मंगल-
रिमझिम बरसात में
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किधर जा रहे
राधेश्याम
हर चौराहे डटे बिजूका
थामे थैली बोतल जाम
किधर जा रहे राधेश्याम!
बरगद सेमल, इधर खड़े जो
ताड़ खजुरिया, उधर अड़े जो
मृग-मरीचिका से ये खेला-
छुरी बगल में, मुँह में राम
किधर जा रहे राधेश्याम!
कुछ गन्ना, कुछ कोयला भक्षक
कुछ गोधन, कुछ चारा रक्षक?
चोर चोर मौसेरे भाई-
खड़े खड़े कर दें नीलाम
किधर जा रहे राधेश्याम!
अपने मत की कीमत, जानें
अनहित, परहित भी पहचानें
लोकतंत्र के मूलमंत्र ये-
ला सकते बेहतर परिणाम
किधर जा रहे राधेश्याम!
१५ जनवरी २०१६
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