अनुभूति में अनिलकुमार
वर्मा
की रचनाएँ—
गीतों में—
आँगन पावन तुलसी
किधर जा रहे राधेश्याम
नयनों में झलक रही
रामभरोसे, बैठे सोचें
सिंदूरी सपने
संकलन में-
मेरा भारत-
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके
मातृभाषा के प्रति-
आओ हिंदी दिवस मनाएँ
होली है-
फागुन
के अजब गजब रंग
ममतामयी-
मातृशक्ति वंदना
बेला के फूल-
पिछवाड़े बेला गमके
वर्षा मंगल-
रिमझिम बरसात में
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राम भरोसे बैठे
सोचें
कुछ घर की, कुछ इधर उधर की
कही अनकही, रह रह कोचें
रामभरोसे, बैठे सोचें।
पिछले साल हुआ बँटवारा
अलग हो गये नंबर खसरा
दो दो कोठरी थोड़ा आँगन
हिस्से आया आधा ओसरा
गहरे घाव भर गये फिर भी
दिल में बाकी रहीं खरोचें
रामभरोसे, बैठे सोचें।
ढाई बीघे खेत के बूते
रोटी चलती जैसे तैसे
इनकी उनकी मजदूरी से
भी मिल जाते थोड़े पैसे
दालें इतनी गराँ हो गयीं
स्वप्न भकोसा, बड़ा, रिकौछें
रामभरोसे, बैठे सोचें।
कच्चा ताल है पड़ा अधूरा
पड़ी अधूरी नाली सड़कें
पुलिया बरखा झेल न पायी
लाठी के बल नाला तडकें
मनरेगा से रकम मिले जब
पहिले ऊपर वाले गोचें।
रामभरोसे, बैठे सोचें।
जनता के हैं प्रतिनिधि, लेकिन
पाँच वर्ष तक बहुर न पायें
नित्य नयी ढपली बदलें
पर राग पुराने ही दोहरायें
टीवी के परदे तक सीमित
नेताओं की लड़ती चोचें
रामभरोसे, बैठे सोचें।
१५ जनवरी २०१६
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