अनुभूति में
अमृत खरे की
रचनाएँ- गीतों में-
अभिसार गा रहा हूँ
गुजरती रही जिंदगी
जीवन की भूल भुलैया
जीवन एक कहानी है
देह हुई मधुशाला
फिर याद आने लगेंगे
फिर वही नाटक |
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फिर याद आने
लगेंगे भुलाने में
सौ-सौ जमाने लगेंगे
मगर हम तो फिर याद आने लगेंगे
किताबों में दाबे रखे फूल-जैसे,
रूमालों में पोहे गये इत्र-जैसे,
न भेजी गयी बावरी चिट्ठियों से,
छुपाकर सहेजे रखे चित्र-जैसे,
अचानक किसी अनमनी सी घड़ी में
निकल आयेंगे, महमहाने लगेंगे
अमावस की रातों की कन्दील-जैसे,
घटाओं घिरी राह की बीजुरी-से,
नदी में सिराये गये दीप-जैसे
किसी भक्त की ज्योतिधर आरती-से,
उजाले लिये हर कहीं हम मिलेंगे
दिखेगे जहाँ, जगमगाने लगेंगे
लरजते हुए होंठ की प्यास जैसे,
छलकती हुई आँख के आँसुओं से,
सँभलते-सँभलते हिले कंगनों से
बरजते-बरजते बजी पायलों से
कभी तुम हमें चूक से टेर लोगे,
कभी हम तुम्हें गुनगुनाने लगेंगे १३
जून २०११ |