अनुभूति में
अमृत खरे की
रचनाएँ- गीतों में-
अभिसार गा रहा हूँ
गुजरती रही जिंदगी
जीवन की भूल भुलैया
जीवन एक कहानी है
देह हुई मधुशाला
फिर याद आने लगेंगे
फिर वही नाटक |
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जीवन की
भूलभुलैया
जीवन की भूलभुलैया में
तुम भी खोये, हम भी खोये,
रह कर भी साथ न साथ रहे
तुम भी रोये, हम भी रोये
ऊँची-ऊँची दीवारों ने
हमको-तुमको बस विलगाया,
लम्बे-चौड़े गलियारों ने
चरणों को केवल भरमाया,
इक द्वार खुला हम पा न सके,
कितने देखे, परखे, टोये
पत्थर पर दूब उगा न सके,
आँधी में दीप जला न सके,
सीलन वाला कोई कोना
हम फुलों सा महका न सके,
सब के सब सपने व्यर्थ गये,
हम ने जो बंजर में बोये
अधरों की प्यास हुई पागल,
बाँहों की आस रही घायल,
कानों में बजते सन्नाटे,
श्वासों में जलते दावालन,
कब चैन मिला, कब आँख लगी,
कब तुम सोये, कब हम सोये?
१३ जून २०११ |