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अनुभूति में अमृत खरे की रचनाएँ-

गीतों में-
अभिसार गा रहा हूँ
गुजरती रही जिंदगी
जीवन की भूल भुलैया
जीवन एक कहानी है
देह हुई मधुशाला
फिर याद आने लगेंगे
फिर वही नाटक

 

अभिसार गा रहा हूँ

ले जायेगा कहाँ तू
मुझसे मुझे चुरा के

पत्‍थर के इस नगर में
करबद्ध प्रार्थनाएँ,
इस द्वार सर झुकाएँ,
उस द्वार तड़फड़ाएँ,
फिर भी न टूटती हैं,
फिर भी न टूटनी है
चिर मौन की कथाएँ,
चिर मौन की प्रथाएँ,

क्‍यों टेरता है रह-रह
मुझे बाँसुरी बना के

उजड़े चतुष्‍पथों पर
बिखरे हुए मुखौटे,
जो खो गये स्‍वयं से
औ' आज तक न लौटे
उनमें ही मैं भी अपनी
पहचान पा रहा हूँ
सन्‍यास के स्‍वरों में
अभिसार गा रहा हूँ,

क्‍यों रख रहा है सपने
मेरी आँख में सजा के

१३ जून २०११

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