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अनुभूति में अमृत खरे की रचनाएँ-

गीतों में-
अभिसार गा रहा हूँ
गुजरती रही जिंदगी
जीवन की भूल भुलैया
जीवन एक कहानी है
देह हुई मधुशाला
फिर याद आने लगेंगे
फिर वही नाटक

 

देह हुई मधुशाला

टटके-टटके नयन तुम्‍हारे
टोना मार गये

बहके-बहके बीत रहे दिन
महकी-महकी रातें,
दर्पण से पलकें करती हैं
अँगड़ाई की बातें,

अधरों को भीने छन्‍दों के
दे उपहार गये

मन में भर आयी कस्‍तूरी
देह हुई मधुशाला,
एक लजीली चितवन ने यह
क्‍या से क्‍या कर डाला,

टूटे जग के बन्‍ध कि हम
भवसागर पार गये

१३ जून २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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