अनुभूति में
अमृत खरे की
रचनाएँ- गीतों में-
अभिसार गा रहा हूँ
गुजरती रही जिंदगी
जीवन की भूल भुलैया
जीवन एक कहानी है
देह हुई मधुशाला
फिर याद आने लगेंगे
फिर वही नाटक |
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गुजरती रही
जिंदगी
गुजरती रही
जिन्दगी धीरे-धीरे
न सुर ही सधे
राग आसावरी के,
न चलना हुआ
साथ लय बावरी के,
भटकती हुई
दर्द की घाटियों में
कि बजती रही
बाँसुरी धीरे-धीरे
अँधेरों से जिसके
लिये वैर ठाना,
उजालों में उसने
न जाना, न माना,
अगर टूटती
शोर सुनता जमाना,
बिखरती रही
चाँदनी धीरे-धीरे
कहाते थे जो
आचमन-अर्ध्य वाले,
सिराते रहे
नेह के सब हवाले,
लिये पीठ पर
शव, दिये, फूल, अक्षत
कि बहती रही
इक नदी धीरे-धीरे
१३ जून २०११ |