विवशता
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था!
गति मिली, मैं चल पड़ा,
पथ पर कहीं रुकना मना था।
राह अनदेखी, अंजाना देश
संगी अनसुना था।।
चाँद सूरज की तरह चलता,
न जाना रात दिन है?
किस तरह हम-तुम गए मिल,
आज भी कहना कठिन है।
तन न आया माँगने अभिसार
मन ही मन जुड़ गया था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।।
देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख -
कली भी मुस्कराई।।
एक क्षण को थम गए डैने,
समझ विश्राम का पल।
पर प्रबल संघर्ष बनकर,
आ गई आँधी सदल-बल।।
डाल झूमी, पर न टूटी,
किंतु पंछी उड़ गया था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार,
पथ ही मुड़ गया था।।
(पर आँखें नहीं भरीं' से) |