अनुभूति में
हरिवंशराय बच्चन की रचनाएँ-
गीतों में-
इस पार उस पार
एकांत संगीत
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ
कोई पार नदी के गाता
जीवन की आपाधापी में
जो बीत गई सो बात गई
ड्राइंगरूम में मरता हुआ गुलाब
तुम मुझे पुकार लो
दिन जल्दी-जल्दी ढ़लता है
पथ की पहचान
बहुत दिनों पर
मेरा संबल
युग की उदासी
लहरों का निमंत्रण
संकलन में--
ज्योति पर्व-
आज फिर से,
आत्मदीप
प्रेमगीत-
आदर्श प्रेम
मेरा भारत-
आज़ादी का गीत,
चल
मरदाने
गौरव ग्रंथ में--
मधुशाला
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कोई पार नदी के
गाता कोई पार नदी के
गाता!
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर,
आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई
उसकी तानों से सुख पाता!
कोई पार नदी के गाता!
आज न जाने क्यों होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता,
सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता! |