अनुभूति में
हरिवंशराय बच्चन की रचनाएँ-
गीतों में-
इस पार उस पार
एकांत संगीत
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ
कोई पार नदी के गाता
जीवन की आपाधापी में
जो बीत गई सो बात गई
ड्राइंगरूम में मरता हुआ गुलाब
तुम मुझे पुकार लो
दिन जल्दी-जल्दी ढ़लता है
पथ की पहचान
बहुत दिनों पर
मेरा संबल
युग की उदासी
लहरों का निमंत्रण
संकलन में--
ज्योति पर्व-
आज फिर से,
आत्मदीप
प्रेमगीत-
आदर्श प्रेम
मेरा भारत-
आज़ादी का गीत,
चल
मरदाने
गौरव ग्रंथ में--
मधुशाला
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दिन जल्दी जल्दी
दिन जल्दी जल्दी ढलता है।
हो जाय न पथ में रात कहीं
मंज़िल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी
जल्दी-जल्दी चलता है।
दिन जल्दी जल्दी ढलता है।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के
भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता मन को
भरता उर में विह्वलता है
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। |