अनुभूति में
प्रेमचंद
सहजवाला
की रचनाएँ—
अंजुमन में—
ख्वाब मेरी
आँखों को
तन्हाई के
लम्हात
रिश्तों की
राह
शहर में चलते
हुए
सराबों में
यकीं के दोहों में-
जीवन रेगिस्तान सा |
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जीवन रेगिस्तान सा
जीवन रेगिस्तान सा खड़ा धरा पर मौन
आँखें तरसें बूँद को लाएगा जल कौन
रिश्तों की इस भीड़ में साया तक है गुम
कौन तुम्हारा मैं हुआ कौन हो मेरे तुम
रिश्तेदारों को नहीं फुर्सत करें सलाम
चिट्ठी पत्री देख ली कोई नहीं पैग़ाम
जो भी अपना मिल गया किया उसी से प्यार
जो भी दुश्मन सा लगा सहा उसी का वार
यादों की खिड़की खुली जब माज़ी की ओर
बिछुड़े साथी थामे थे बीते पलों की डोर
साथी कितना दूर है फिर भी कितना पास
देखो कितनी ढीठ है मेरे मन की आस
साथी कितना पास है फिर भी कितना दूर
सपने से भी ज़्यादा है सच कितना मजबूर
संसद में सांसद भिड़े, हुई रेल डीरेल
समाचार हैं बस यही, अपराधी को 'बेल'
क़ातिल क़ातिल कह उसे मत पीटो तुम ढोल
मुजरिम इज्ज़तदार था मिला उसे 'पैरोल'
८ जून २००९ |