तन्हाई के लम्हात दिल ने
तन्हाई के लम्हात चुगे थे दिन भर
और आँखों में मेरी अश्क छुपे थे दिन भर
मौलवी थे वो तपस्या में रहे थे
दिन भर
उनकी चौखट पे कई लोग रुके थे दिन भर
प्यार इस शहर में इक शख्स था कल
बाँट रहा
उस के क़दमों में बहुत लोग गिरे थे दिन भर
शब की आगोश में बेसुध से पड़े
जिस लम्हा
सिर्फ इस बात पे खुश थे कि चले थे दिन भर
कोई सीने से लगा और कोई
बेगानावार
थी तसल्ली कि कुछ अफराद मिले थे दिन भर
जश्न तो आया मगर दिल को दरीदः
कर के
सब इसी बात पे अफ़सोस किये थे दिन भर
उन को मज़हब का जुनूँ था कि
सियासत की लगन
हमने जलते वे मकानात गिने थे दिन भर
हम सुखनवर तो नहीं थे कोई
ग़ालिब जैसे
बस खयालात ही कागज़ पे लिखे थे दिन भर
१२ अप्रैल २०१० |