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अनुभूति में प्रेमचंद सहजवाला की रचनाएँ

अंजुमन में—
ख्वाब मेरी आँखों को
तन्हाई के लम्हात
रिश्तों की राह
शहर में चलते हुए

सराबों में यकीं के

दोहों में-
जीवन रेगिस्तान सा

 

रिश्तों की राह

रिश्तों की राह चल के मिले अश्क बार-बार
तनहाइयों ने बाँहों में ले कर लिया उबार

चलती है दिल पे कैसी तो इक तेज़-सी कटार
डोली उठा के जाते हैं जब भी कोई कहार

दिन भर चले तो रात को आ कर के सो गए
फिर नींद की पनाहों में सपने सजे हज़ार

कितनी कशिश भरी है ये अनजान-सी डगर
मिलता है हर दरख़्त के साए से तेरा प्यार

मौसम बदल बदल के ही आते हैं बाग में
आई है अब खिजां को बताने यही बहार

वादों पे जीते जीते हुई उम्र अब तमाम
अब कौन कर सकेगा हसीनों का एतबार

साकी की दीद करने को हम भी चले गए
रिन्दों की मैकदे में लगी जिस घड़ी कतार

साधू भी रंग गए हैं सियासत के रंग में
वादों से मोक्ष देंगे वो बन कर रंगे सियार

दिल को लगाने वाले वो मौसम चले गए *
अब तो फकत बचे हैं ये उजड़े हुए दयार

नासेह दे गए हैं दीवानों को ये सबक
अब कोई चारासाज़ है कोई न गमगुसार

१२ अप्रैल २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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