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अनुभूति में प्रेमचंद सहजवाला की रचनाएँ

अंजुमन में—
ख्वाब मेरी आँखों को
तन्हाई के लम्हात
रिश्तों की राह
शहर में चलते हुए

सराबों में यकीं के

दोहों में-
जीवन रेगिस्तान सा

 

शहर में चलते हुए

शहर में चलते हुए सब को यही लगता है क्या
कू ब कू दुश्मन कोई फिर घात में बैठा है क्या

हाथ फैला कर यहाँ है हर कोई करता सवाल
देखना मेरी लकीरों में लिखा पैसा है क्या

कह रहा था इक सियासतदान इक तक़रीर में
मुझ से भी ज़्यादा कहो चेहरा कोई उजला है क्या

रास्तों से कह रहा था कल समुन्दर कुछ उदास
मेरी नदियों को कहीं पर आप ने देखा है क्या

पूछते थे एक दूजे से ये कुछ ख़ास आदमी
यार बतलाओ कि यह आम आदमी होता है क्या

ईश्वर भी इक बशर को देख कर हैरान था
सोचता था यह बशर खाता है क्या पीता है क्या

रूह-सी कोई भटकती आज भी इंजील में
फिर कोई तालीम देना चाहता ईसा है क्या

हो गया है यह वतन भी मिस्र के बाज़ार-सा
आदमी से और ज़्यादा आज कुछ सस्ता है क्या

इश्क में बहरे-रमल क्या और क्या बहरे हज़ज़,
दर्द में कोई कहे मक़ता है क्या मतला है क्या

१२ अप्रैल २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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