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अनुभूति में प्रेमचंद सहजवाला की रचनाएँ

अंजुमन में—
ख्वाब मेरी आँखों को
तन्हाई के लम्हात
रिश्तों की राह
शहर में चलते हुए

सराबों में यकीं के

दोहों में-
जीवन रेगिस्तान सा

 

ख्वाब मेरी आँखों को

ख्वाब मेरी आँखों को बस खुशनुमा देते रहें,
रोज़ तकरीरें मुझे ऐ मेहरबाँ देते रहें

सारी खुशबू आपकी और खार हों मेरे सभी
और कितने इश्क के हम इम्तिहाँ देते रहें

मुजरिमों में नाम कितना भी हो शामिल आपका
आप अपनी बेगुनाही के बयां देते रहें

कर्जदारों के न कर्जे अब चुका पाएँगे हम
बा-खुशी कुर्बानियाँ अपनी किसाँ देते रहें

आ गयी है सल्तनत फौलाद की अब गाँव में
या ज़मीं दे दें इन्हें या अपनी जाँ देते रहें

कायदों का मैं नहीं हों कायदे मेरे गुलाम
फलसफा ये मुन्सिफों को हुक्मराँ देते रहें

१२ अप्रैल २०१०

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