अनुभूति में कुमार गौरव
अजितेन्दु की रचनाएँ-
नये दोहों में-
इच्छा का विश्राम
गीतों में-
उपवन बस कुछ दूरी
पर है
जमींदार सी ठंड खड़ी है
दुनिया में सैयाद बहुत हैं
पंख अभी तक उग ना पाये
रीतापन भी नित लाता है
दोहों में-
नेताजी के दाँव
विशेषांक में-
गंगा-
अमृत तेरा नीर है (दोहा और हरिगीतिका) | |
इच्छा का विश्राम (दोहे)
बिखरावों के ठाँव में, इच्छा का विश्राम।
कान भरे परिवेश ने, जुड़ कर भी क्या काम॥
अपने मन की वेदना, दूजे जन की पीर।
आपस में जोड़े इन्हें, नैन-नदी का नीर॥
गुंबद की अपनी व्यथा, असमंजस के हाथ।
ध्वज दस्तक देने लगा, नींव न देती साथ॥
कथा हुई चतुरंगिनी, पात्र रहा निःशस्त्र।
द्रष्टा से कातर विषय, फिरे बचाता वस्त्र॥
अनुत्तरित से बढ़ गया, प्रश्नों का अनुराग।
किंकर्तव्यविमूढ़ता, अब उत्तर के भाग॥
सुलग रही हैं सुर्खियाँ, झुलस रहा है प्यार।
हाय! व्यावसायिक हुए, आँखों के अखबार॥
खोज रहा क्या हाट में? बिके हुए हम लोग।
जिसने रखा खरीद के, लगा उसी को भोग॥
नैनों में चुभने लगा, निष्ठाओं का युद्ध।
प्रेम अनिर्णय से हुआ, किया हृदय को बुद्ध॥
जनता जैसा हो गया, क्यों तेरा बर्ताव।
खोज रहा अपने लिए, कागज वाली नाव॥
अभिभावकता जीविका, मानदेय वैराग्य।
भीष्म प्रतिज्ञा ही रही, इस हिन्दी के भाग्य॥
१ जुलाई २०२२ |