अनुभूति में कुमार गौरव
अजितेन्दु की रचनाएँ-
गीतों में-
उपवन बस कुछ दूरी
पर है
जमींदार सी ठंड खड़ी है
दुनिया में सैयाद बहुत हैं
पंख अभी तक उग ना पाये
रीतापन भी नित लाता है
दोहों में-
नेताजी के दाँव
विशेषांक में-
गंगा-
अमृत तेरा नीर है (दोहा और हरिगीतिका) | |
नेताजी के दाँव (दोहे)
बिजली से भी तेज हैं, नेताजी के दाँव।
कभी दबाएँ दाँत से, कभी पकड़ लें पाँव॥
अपने हित से मित्रता, अपने हित से बैर।
करके नेताजी करें, नित संसद की सैर॥
त्यागा अपने धर्म को, बेच दिया ईमान।
घोटालों के खेल से, देश हुआ बदनाम॥
लोकतंत्र में अब कहाँ, 'लोक', 'तंत्र' का मान।
अनीतियों का जोर है, अनाचार का गान॥
सदा सुनाते फैसला, देख-परख उपनाम।
वोट बैंक को तुष्टकर, ही करते आराम॥
आतंकी को प्राप्त है, मेवे औ' मिष्ठान्न।
परिजन त्रस्त शहीद के, नहीं किसी का ध्यान॥
दल जबतक था दूसरा, दीख रहा था चोर।
जिसदिन से अपना हुआ, लगे सावनी मोर॥
सीनाजोरी पक्ष की, तो बेसुरा विपक्ष।
चीलों-कौओं से भरा, चर्चा वाला कक्ष॥
कुचल रहे हमको यहाँ, नेताओं के बूट।
लड़ती जब-जब बिल्लियाँ, बंदर लेता लूट॥
बेच-बेचकर खा गये, नेता सारा देश।
अब हमको भी बेचते, बदल-बदल कर वेश॥
२३ सितंबर २०१३
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