अनुभूति में कुमार गौरव
अजितेन्दु की रचनाएँ-
गीतों में-
उपवन बस कुछ दूरी पर है
जमींदार सी ठंड
खड़ी है
दुनिया में सैयाद बहुत
हैं
पंख अभी तक उग ना पाये
रीतापन भी नित लाता है
दोहों में-
नेताजी के दाँव
विशेषांक में-
गंगा- अमृत
तेरा नीर है (दोहा और हरिगीतिका)
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दुनिया में सैयाद बहुत हैं
सावधान हो उड़ना बुलबुल
दुनिया में सैयाद बहुत हैं
बड़े प्रपंची हैं वो सारे
तुम्हें प्रलोभन ढेरों देंगे
आजादी का स्वप्न दिखा के
आजादी को ही हर लेंगे
सत्य, सरलता घटी जा रही
सभी तरफ जल्लाद बहुत हैं
नहीं किलकना भाता उनको
मात्र मांस की चाहत रखते
पंख तोड़ते निर्दयता से
मानो चीखों को भी चखते
लगी नजर जिन-जिनको उनकी
नीड़ पड़े बर्बाद बहुत हैं
उनके दाने बड़े निराले
नये-नये रंगोंवाले हैं
जाल बिछाते लगा मुखौटा
हो जाते खग मतवाले हैं
उन्हीं खगों की नासमझी पर
वो वहशी आबाद बहुत हैं
६ जनवरी २०१४
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