अनुभूति में कुमार गौरव
अजितेन्दु की रचनाएँ-
गीतों में-
उपवन बस कुछ दूरी
पर है
जमींदार सी ठंड खड़ी है
दुनिया में सैयाद बहुत हैं
पंख अभी तक उग ना पाये
रीतापन भी नित लाता है
दोहों में-
नेताजी के दाँव
विशेषांक में-
गंगा-
अमृत तेरा नीर है (दोहा और हरिगीतिका)
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उपवन बस कुछ दूरी
पर है
अरी तितलियों तजो उदासी
उपवन बस कुछ दूरी पर है
रखा धैर्य अबतक तुमसब ने
एक-दूजे का बनी सहारा
इसी लगन से आया शुभदिन
पार हो गया मरुथल सारा
ओ नटखट रंगों की सखियों
आगे रंगों का ही घर है
तपी रेत का दंश झेल के
कटी नागफनियों पे रातें
व्यंग कसा था कुछ कीड़ों ने
ना भूलेगा दिल वो बातें
चलो हँसो कट गये बुरे दिन
तुम्हें भला अब किसका डर है
देखो मिलने लगीं खुशबुएँ
सुंदर कल है लगा बुलाने
खबर तुम्हारे आने की सुन
कोयल लगी मधुर धुन गाने
मोर विजयी दल के स्वागत में
सजा रहा पंखों से दर है
६ जनवरी २०१४
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