अनुभूति में कुमार गौरव
अजितेन्दु की रचनाएँ-
गीतों में-
उपवन बस कुछ दूरी पर है
जमींदार सी ठंड
खड़ी है
दुनिया में सैयाद बहुत
हैं
पंख अभी तक उग ना पाये
रीतापन भी नित लाता है
दोहों में-
नेताजी के दाँव
विशेषांक में-
गंगा- अमृत
तेरा नीर है (दोहा और हरिगीतिका)
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जमींदार सी ठंड खड़ी है
जमींदार सी ठंड खड़ी है
कारिन्दों से मेघ गरजते
सर्द हवा की
भाँज लाठियाँ, जन-जन को
ललकार रहे हैं
खिड़की से ले दरवाजे तक
रह-रह धक्के मार रहे हैं
घबराहट में लोग बेचारे छिपे
घरों में
बचते-बचते
होने लगीं
बंद बाजारें, सड़कों पर
छाया सन्नाटा
बूँदों की जुल्मी टोली ने
भी बवाल कुछ ऐसा काटा
सेहत-धन की रक्षा करने तन
ढँक भागे
सभी झपटते
रोज कमा
खानेवालों की फूटेगी फिर
आज रुलाई
ना पूरी पर आधे दिन की
तो लगान में गई कमाई
गुस्से में आया है मौसम
घूम रहा है
पाँव पटकते
६ जनवरी २०१४
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